Product Summery
Author: Dr. Priyabhishek Sharma
paperback
₹ 280
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डॉ. प्रियाभिषेक शर्मा द्वारा अपनी आध्यात्मिक यात्रा में वर्णित विलक्षण घटनाएं एवं इस यात्रा को एक प्रवाहपूर्ण सूत्र में बाँधती तारतम्यता मंत्रमुग्ध करती है। मैंने इस रचना को रुचि के साथ पढ़ा एवं पढ़कर आनन्द का अनुभव किया। -डॉ. कर्ण सिंह, (प्रख्यात विद्वान एवं पूर्व केन्द्रीय मन्त्री)
अनायास घर आ पहुँचे एक हिमालयी नागा गुरु ने मुझे बीज मन्त्र से दीक्षित कर ध्यान करने को कहा था। दो वर्ष पश्चात् एक रात मैंने पाया कि मेरा मस्तिष्क दूर स्थित व्यक्तियों एवं स्थानों से जुड़ने लगा है। प्रत्येक दिन के साथ मेरे आभास की शक्ति बढ़ने लगी है। दूर अंतरिक्ष से कुछ रहस्यमयी ध्वनियाँ उतरती एवं मेरे मस्तिष्क में प्रवेश कर जाती। डरा एवं सहमा सा, अब मैं भीतर किसी धुंधली सी तलाश पर निकल चुका था। लगभग दो दशकों तक मन, ध्यान एवं योगियों के मध्य हिमालयी गुरुओं द्वारा सिखलाई विद्याओं के साथ ध्यान करते हुए एक दिन मैंने पाया कि मेरा मन रुक गया है। विचारों के मकड़जाल के बीच से एक अनवरत मौन का झरना प्रस्फुटित हुआ था। मेरी यात्रा अब एक शाश्वत सन्त के चरणों पर जा ठहरी थी।